Friday, June 1, 2012

दरख़्त


कुछ बातें, कुछ यादें ऐसी होती हैं जो सदा आपके साथ रहती हैं | भूली, कड़वी या गलती समझ के आप लाख कोशिश करो इनसे पीछा छुड़ाने कि ये दब जाती हैं अन्दर लेकिन मौका पाते ही फ़ौरन सतह पे आ जाती हैं क्यूंकि ये आपकी शख्सियत का एक अभिन्न हिस्सा हैं | और वक़्त के साथ  तो फिदरत बदलती है शख्सियत नही |
हाँ लेकिन वक़्त बदलता है | वक़्त जो किसी का सगा नही, इन यादों का भी नही...

ये गुमाँ न था मुझे 
के अब भी जज़्बात मचलेंगे |
पर सब कुछ जाना - पहचाना सा लगा,
कल जब मेरा गाँव आया |

शीशा नीचे हुआ - जैसे खुद ही;
कुछ धूल और खुशबू भर गयी कार में |
वो महक भी थी जानी - पहचानी सी |
"ड्राईवर, गाड़ी रोको"
बोला मैं और उतरा नीचे |
चारों और थी वही खुशबू;
बरसों से जो महक रही थी मेरे बदन में |
बरसों से जो महक रही थी म्रेरे ज़हन में |

लगा यूँ,
के अरसों बाद भूला कोई
लौट के घर आ गया |

घर आ गया मैं, ऐ दोस्त;
वो बाजरे के, सरसों के खेत भी वहीँ हैं,
जहाँ हम घंटों-घंटों खो जाते थे |
वो पगडण्डी भी वहीँ मिली, 
जिसपे डंडी से हम टायर चलते थे |
हाई-वे के किनारे ही
मिल गया वो 'दरख़्त' भी;
जिसपे तुम चढ़ जाते थे 
फल चुराने के लिए, ऐ दोस्त !
और मैं चौकन्ना देखता रहता था,
कि कोई देख ना ले बूढ़े काका के घर से |

घर तो टूट गया है अब 
और ये हाई-वे बन गया है |

माँ कि मार खाके भी 
हर दिन हम इस दरख़्त पे आते थे |
क्यूंकि इससे मीठे फल कहीं नही;
और ये भी लदा मिलता था फलों से हर रोज़,
जैसे रातों-रात फसल उगाता हो हमारे लिए |

वो फल बहुत ही मीठे थे - सबसे मीठे ;
तेरे साथ जो बांटे-खाए, ऐ दोस्त |

आज उसके तने से टिक कर बोला मैं -
" एक फल खिला दे, यार दरख़्त |
दोस्त तो नही हैं आज,
पीछे छूट गए कहीं |
तो तू ही एक फल खिला दे, यार दरख़्त |
तेरे फलों से रसीला कोई फल नही 
लदा रहता था,
टोकरी भर - भर देता था हर रोज़,
आज बस एक ही खिला दे, यार दरख़्त |
तू मेरी क्यूँ नही सुनता |"
"क्या टटोल रहे हो, साहब"
पीछे  एक नौजवान बोला,

"किसी काम का नही साहब;
बाँझ है ये बाँझ |
ये पेड़ नही फलता |"


सिहर उठा मैं, 
काँपते हुए पैर खुद ही चल पड़े |
ड्राईवर से कहा मैंने -
"जल्दी चलो, मैं लेट हो रहा हूँ|"


4 comments:

  1. bahut khoob....vakai vo bachpan ki yaade, vo gaanv ki dhool, bageeche ke amrood...sach,kabhi-kabhi lagta hai hum bade kyon ho jate hain, kyon duniya ke tane-bano main fas jate hain....kitna achcha hota agar hum bachpan ko saath leker chal pate aur yaado ko mahez ek naam hi de pate..

    Her baar ki tareh ek-ek line dil ko chooti hai, bahut khoob, likhne ka ye andaaj aur najariya yoon hi banaye rakhna.....god bless you.....

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    1. Thanks di...all ur blessings..!!

      aur wo bageechay ke amrood ki to baat hi alag hai :)

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  2. every time i read ur creations...i fall in luv wid u all over again..:)
    keep writing...:))

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