Friday, June 29, 2012

नमी

कुछ बातें, कुछ रिश्ते, कुछ बौछारें जो हमें इस क़दर तर-बतर कर देती हैं कि  समझ नहीं आता, वो कहाँ और हम कहाँ। कोई फर्क नहीं कर सकता। वो हमसे हैं या हम उनसे कोई समझ नही सकता....

गई रात बहुत गहरी नींद
सोयीं थी तुम ।
जैसे सावन की भीगती हुई,
कजरारी सी शुद्ध सुबह;
वैसी ही निश्छल - साफ - शुद्ध,
सोयीं थी तुम ।
मैं अपनी नींद को मनाता रहा,
मत आना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
और तेरी नींद भी थपकाता रहा,
रह जाना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।

फिर एक ख़याल आया
और मेरी नींद उड़ गयी ।

Friday, June 1, 2012

दरख़्त


कुछ बातें, कुछ यादें ऐसी होती हैं जो सदा आपके साथ रहती हैं | भूली, कड़वी या गलती समझ के आप लाख कोशिश करो इनसे पीछा छुड़ाने कि ये दब जाती हैं अन्दर लेकिन मौका पाते ही फ़ौरन सतह पे आ जाती हैं क्यूंकि ये आपकी शख्सियत का एक अभिन्न हिस्सा हैं | और वक़्त के साथ  तो फिदरत बदलती है शख्सियत नही |
हाँ लेकिन वक़्त बदलता है | वक़्त जो किसी का सगा नही, इन यादों का भी नही...

ये गुमाँ न था मुझे 
के अब भी जज़्बात मचलेंगे |
पर सब कुछ जाना - पहचाना सा लगा,
कल जब मेरा गाँव आया |

शीशा नीचे हुआ - जैसे खुद ही;
कुछ धूल और खुशबू भर गयी कार में |
वो महक भी थी जानी - पहचानी सी |
"ड्राईवर, गाड़ी रोको"
बोला मैं और उतरा नीचे |
चारों और थी वही खुशबू;
बरसों से जो महक रही थी मेरे बदन में |
बरसों से जो महक रही थी म्रेरे ज़हन में |

लगा यूँ,
के अरसों बाद भूला कोई
लौट के घर आ गया |