Sunday, April 22, 2012

माशूख़ वतन

प्यार तो प्यार होता है। विद्वानों को समझ नही आया, पंडितों ने हाथ खड़े कर दिए।प्यार तो प्यार होता है। माँ के लिए भी होता है महबूब के लिए भी। प्यार की कोई भाषा, कोई समझ नही होती और कविता का कोई नज़रिया नही होता। बस तो प्यार को एक नए नज़रिए से परोसने की कोशिश की है इधर..


नीली - काली- फैली 
रात की स्याही पे,
कुछ जो बिखरे हैं 
तारों के वो छीटें हैं।
धुंधलाये से लगे सारे
तेरी आँखों के नूर से,
चाशनी भी लगी फीकी 
बस तेरे होंठ मीठे हैं ।

भीगी - काली जुल्फों से 
छिटका जो बूँद - बूँद पानी;
कुछ सांसें उधार लीं मैने
कुछ और जीने की ठानी ।

तेरी मोहब्बत की सलाईयाँ लेकर
कुछ ख्वाब बुने ऊनी ।
तेरी शामों में कूची डुबोकर रंग दीं
अपनी शामें भी महरूनी ।

तेरे इश्क़ से सराबोर
सांसें - मन, मेरा जान-ओ-ज़हन;
ऐ माशूख़ वतन, मेरे माशूख वतन।



तेरे बसंती आँचल को जब भी छुआ मैने;
रंग चढ़ा आँखों में
और हथेली पे रह गयी तेरे जिस्म की खुशबू।
मुझे लिया जब - जब अपने आग़ोश में तूने;
खुदी के करीब आया में, खुदी से हुआ रूबरू।

तस्बीह में, ताबीज़ में;
यही आरज़ू, यही आरज़ू -
तू हंसती रहे, खिलती रहे ।
मेरी खुशियाँ सारी छीन ले,
तेरे ग़म मैं सारे नोच लूं ।
इस क़दर तेरा हो जाऊँ, ऐ सनम !
की तू भी मैं और मैं भी तू - बस तू ही तू ।
मेरा प्यार तू, मेरा इश्क़ तू, ऐ वतन !
बस तू ही तू - बस तू ही तू - बस तू ही तू ।


ऐ मेरे महबूब वतन ।
ऐ मेरे माशूख़ वतन ।






3 comments:

  1. awsome !!!.
    Purani school days me likhi hui collections bhi uplaod karo..
    Will love to read them all again :)

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  2. Her baar ki tareh bahut umda!.....liked the topic...likhte raho....

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  3. बहुत सुंदर रचना ऋषि जी ... लिखते रहिये ... :)

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