Sunday, April 22, 2012

माशूख़ वतन

प्यार तो प्यार होता है। विद्वानों को समझ नही आया, पंडितों ने हाथ खड़े कर दिए।प्यार तो प्यार होता है। माँ के लिए भी होता है महबूब के लिए भी। प्यार की कोई भाषा, कोई समझ नही होती और कविता का कोई नज़रिया नही होता। बस तो प्यार को एक नए नज़रिए से परोसने की कोशिश की है इधर..


नीली - काली- फैली 
रात की स्याही पे,
कुछ जो बिखरे हैं 
तारों के वो छीटें हैं।
धुंधलाये से लगे सारे
तेरी आँखों के नूर से,
चाशनी भी लगी फीकी 
बस तेरे होंठ मीठे हैं ।

भीगी - काली जुल्फों से 
छिटका जो बूँद - बूँद पानी;
कुछ सांसें उधार लीं मैने
कुछ और जीने की ठानी ।

तेरी मोहब्बत की सलाईयाँ लेकर
कुछ ख्वाब बुने ऊनी ।
तेरी शामों में कूची डुबोकर रंग दीं
अपनी शामें भी महरूनी ।

तेरे इश्क़ से सराबोर
सांसें - मन, मेरा जान-ओ-ज़हन;
ऐ माशूख़ वतन, मेरे माशूख वतन।

Sunday, April 1, 2012

सफ़र


पहले तो क्षमा इसलिए कि एक पुरानी कृति प्रस्तुत की है।कुछ ज्यादा ही पुरानी शायद, आठ साल पहले (जून २००४) में तब लिखी थी जब मेरी आयु लगभग सोलह होगी। 
यूहीं कल कुछ 'बिखरे पन्ने' टटोलते हुए इस से टकरा गया तो लगा कि अगर आज भी ऐसा कुछ लिखता तो तो करीब- करीब यूँ  ही होता । बस तो प्रस्तुत कर दिया यहाँ जो मैं ज़िन्दगी के 'सफ़र' के बारे में सोचता था जीवन  के उन  कुछ  सबसे अनमोल वर्षों में -


सोचता हूँ,
यूँ ही कभी बैठे हुए
झील के किनारे,
लहरों पर नाचती चाँदनी को देखकर,
आते - जाते सावन के बादलों से
पूछता हूँ -

क्या किसी के लिए रुकेगा ये जीवन?

जीवन एक युद्ध है, संघर्ष है;
कोई अड़चन नहीं,
अभी पार होता सहर्ष है ।
मिलेंगे लाखों मीत,
अभी लम्बा बहुत 'सफ़र' है ।